दुनिया में ग़म रहा न ब-ज़ाहिर ख़ुशी रही जिस वक़्त तक जिए ख़लिश-ए-ज़िंदगी रही जब तक मिरी नज़र में तजल्ली तिरी रही ख़ुद रहबर-ए-ख़िरद मिरी दीवानगी रही हम तो सुना के ग़म का फ़साना चले गए सुनते हैं देर तक तिरे लब पर हँसी रही अक्सर शब-ए-फ़िराक़ सितारों की छाँव में याद आप की शरीक-ए-ग़म-ए-बेकसी रही ऐसा भी इक मक़ाम मोहब्बत में आ गया वो इज़्तिराब-ए-शौक़ न वो बे-ख़ुदी रही नज़रें मिला के तुम से यही सोचता रहा इज़हार-ए-दर्द दिल में कहाँ तक कमी रही तस्कीन का ख़याल भी आता नहीं मुझे अच्छा हुआ न उन की नवाज़िश कभी रही उन की समझ में आ गईं मजबूरियाँ मिरी इस जब्र-ए-ज़िंदगी में भी इक ज़िंदगी रही कलियों के बाँकपन में गुलों के निखार में गुलशन में हर तरफ़ तिरी जल्वागरी रही समझेंगे अहल-ए-दिल इसे तौहीन-ए-बंदगी 'साजिद' रहीन-ए-सज्दा अगर बंदगी रही