दुनिया में किस को हम से अदावत नहीं हुई लेकिन हमें किसी से शिकायत नहीं हुई हमदर्दियाँ ज़माने की हासिल न कर सके हम से तुम्हारे ग़म की तिजारत नहीं हुई दिल सा नगीन वार दें हुस्न-ए-मजाज़ पर सद-शुक्र हम से ऐसी हिमाक़त नहीं हुई हम ने अदू की तेग़ भी रक्खी सँभाल कर हम से किसी की शय में ख़यानत नहीं हुई सच है कि ज़िंदगी को सज़ा जानते थे हम जब तक किसी को हम से मोहब्बत नहीं हुई हम सरकशी की सारी हदें पार कर गए हम को किसी ख़ता पे नदामत नहीं हुई 'काशिफ़' फ़क़त फ़रेब है अपना फ़न-ए-सुख़न हक़-गोई की अगर हमें जुरअत नहीं हुई