दुनिया में कोई अहल-ए-नज़र क्या रहा नहीं वो सामने है और कोई देखता नहीं ऐसा भी इंक़लाब जहाँ में हुआ नहीं दिन हो गया है और अंधेरा गया नहीं तुम ने भी कुछ सुना है मिरे दिल का माजरा है हर ज़बाँ पे और किसी ने कहा नहीं माना कि मैं ज़माने में मजबूर हूँ मगर ये ख़ैर है कि तुम भी किसी के ख़ुदा नहीं आज अपने आशियाने में बुलबुल है बे-वतन सय्याद के भी अह्द में ऐसा हुआ नहीं ईमान है मिरा तिरी जन्नत पर ऐ ख़ुदा लेकिन ये मेरे ख़ून-ए-जिगर का सिला नहीं 'मैकश' मिरा बयान ज़माने ने सुन लिया है जिस का ज़िक्र सिर्फ़ उसी ने सुना नहीं