दुनिया से अक़्ल-ओ-फ़हम के आसार मर गए साए तो जी उठे दर-ओ-दीवार मर गए कश्ती-ए-ज़ीस्त पार न लग पाई ले के वो अक़्ल-ओ-ख़िरद का हाथ में पतवार मर गए जिन को था ख़ौफ़ मौत का अपनी हयात में इक बार क्या मरे वो कई बार मर गए था इम्तिहान-ए-शौक़ क्या नक़्द-ए-जाँ क़ुबूल हो कर ख़ुशी से हम बड़े सरशार मर गए ख़ुशबू उड़ा के लाए थे दामान-ए-यार से इस मुद्दआ-ए-शौक़ के इज़हार मर गए जन्नत मिली न हूर गया इत्तिक़ा कहाँ मलते हैं 'दर्द' हाथ कि बे-कार मर गए