दुनिया से बे-शुमार मुसलमाँ गुज़र गए हुस्न-ए-अज़ल पे शश्दर-ओ-हैराँ गुज़र गए मुमकिन न था कि दीद की ने'मत यहाँ मिले दिल में लिए विसाल के अरमाँ गुज़र गए इंसानियत को नाज़ था जिन के वजूद पर ऐसे भी जाने कितने ही इंसाँ गुज़र गए आलम फ़ना-पज़ीर है बाक़ी है ज़ात-ए-हक़ लाखों करोड़ों हज़रत-ए-इंसाँ गुज़र गए तूफ़ाँ जो उठ रहा है वो बैठेगा एक दिन ऐसे न जाने कितने ही तूफ़ाँ गुज़र गए इस्लाम का मुहाफ़िज़-ओ-निगराँ है ख़ुद ख़ुदा हम जैसे जाने कितने मुसलमाँ गुज़र गए हुस्न-ए-अज़ल है आज भी जल्वा-फ़गन 'उरूज' हुस्न-ए-अज़ल के लाख ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गए