दुनिया से सादगी का चलन कौन ले गया हैरत तो है ख़ुलूस-ए-सुख़न कौन ले गया यारान-ए-ख़ुश-अदा से ज़रा पूछते चलें मौसम का रंग हुस्न-ए-चमन कौन ले गया वो जिस की रौशनी में था माज़ी का नूर भी ऐ दोस्त वो चराग़-ए-कुहन कौन ले गया आदाब-ओ-गुफ़्तुगू में मतानत वही रही शेर-ओ-अदब से नुदरत-ए-फ़न कौन ले गया शबनम की ही ख़ता न हवाओं का है क़ुसूर फूलों के पैरहन से शिकन कौन ले गया हल्का सा था न अब्र का साया कोई वहाँ सूरज के भी नगर से किरन कौन ले गया कहिए तो मुझ को तेज़-रवी किस ने बख़्श दी 'अनवर' मिरे सफ़र की थकन कौन ले गया