दुनिया तंज़ करे तो आह-ओ-ज़ारी क्या हम दोनों को मिलने में दुश्वारी क्या शादाबी चेहरों पर होती है तहरीर ज़िंदा दिलों पर छाती है बे-ज़ारी क्या फ़िरक़ा-वारी अम्न शहर का छीनेगी आग न जो भड़काए वो चिंगारी क्या आँखें फोड़ें या फिर जान ही दे दें हम हिम्मत टूटी इश्क़ की बाज़ी हारी किया शहर में जाओ रिज़्क़ मिलेगा कोशिश से घर में बैठे मिटती है बेकारी क्या वक़्त बुरा हो तो तदबीरें ला-हासिल काम आएगी ऐसे में हुश्यारी क्या हम जैसों से बिन मतलब कब मिलते हैं धन वालों से निभती भी है यारी क्या