हम अहल-ए-दिल हैं समझते हैं आशिक़ी क्या है जुनूँ-नज़ीर बताएँगे बंदगी क्या है चराग़ आँखों के बुझते हैं रात आते ही शब-ए-अलम के असीरों को रौशनी क्या है अता-ए-ख़ास है तेरी मिरे लिए या-रब ये हर्फ़-ओ-सौत हैं क्या और आगही क्या है किसी की ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर का अब ख़याल कहाँ हयात में है तवाज़ुन ये दिल-लगी क्या है ये इज़्तिराब नहीं उस से अब जुदा हो कर तो फिर बताओ कि आँखों में ये नमी क्या है सितम नसीब का है गर वो रह गया पीछे ख़ुद-ए'तिमाद बशर है तो फिर कमी क्या है मिरा जुनूँ ये मुझे किस दयार में लाया बिखर गया है वजूद अपना बेबसी क्या है 'अज़ीम' सब से बहुत एहतियात से मिलना कहाँ समझते हैं अब लोग दोस्ती क्या है