दुनिया-ए-रंग-ओ-बू से किनारा नहीं किया अच्छा किया जो हम ने दिखावा नहीं किया हम जिस्म को बचा न सके गर्द से मगर ये तो किया कि रूह को मैला नहीं किया औरों पर अपनी ज़ात की तरजीह तो बजा हम ने कुछ अपने साथ भी अच्छा नहीं किया चुप-चाप बाहर आ गए रस्सा-कशी से हम ज़ाहिर किसी पे अपना इरादा नहीं किया बस डूबते उभरते रहे हैं तमाम उम्र हम ने उबूर कर्ब का दरिया नहीं किया कुछ धूप उस को चीर के हम तक पहुँच गई कुछ हम पर उस दरख़्त ने साया नहीं किया 'बेताब' जानकार सभी करतबों के थे कुछ बात थी जो हम ने तमाशा नहीं किया