दूर दूर सहरा है और दिल अकेला है लफ़्ज़ लफ़्ज़ पत्थर हैं ज़ख़्म ज़ख़्म रस्ता है कोह-ए-जाँ उठाए हूँ बोझ मेरा अपना है ज़र्द ज़र्द हैं कलियाँ और बाग़ महका है दिन को मत कहो क़िस्से कोई राह भूला है मैं कि इश्क़-ए-पेचाँ हूँ तू शिकस्ता छज्जा है क्यूँ ख़मोश है सब्ज़ा ज़हर पी के सोया है मदरसे की ईंटों पर सब कुछ अब भी लिक्खा है