हवाएँ जब घंटियाँ बजाएँ तो लौट आना किसी की आँखें दिए जलाएँ तो लौट आना बहुत दिनों तक ये मौसम-ए-गुल नहीं रहेगा जो शाख़-ए-जाँ पर गुलाब आएँ तो लौट आना हवा दरख़्तों से जब गले मिल के रो रही हो परिंद लम्बे सफ़र पे जाएँ तो लौट आना जो ज़िद पे आ जाए दिल तो उस की भी मान लेना पुरानी यादें बहुत सताएँ तो लौट आना फ़िराक़ की आग चाट जाती है जिस्म-ओ-जाँ को जो सुन सको वक़्त की सदाएँ तो लौट आना