दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द-ए-सफ़र जाती है पास आते हुए लम्हात पिघल जाते हैं अब तो हर चीज़ दबे पाँव गुज़र जाती है रात आ जाए तो फिर तुझ को पुकारूँ या-रब मेरी आवाज़ उजाले में बिखर जाती है दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है