क़तरा हूँ मगर रौनक़-ए-सहरा हूँ बुरा हूँ

क़तरा हूँ मगर रौनक़-ए-सहरा हूँ बुरा हूँ
मज़लूम के ज़ख़्मों का मसीहा हूँ बुरा हूँ

वो बैअ'त-ए-फ़िरऔन के क़ाइल हैं सो अच्छे
मैं वक़्त के नमरूद से उलझा हूँ बुरा हूँ

ताग़ूत-ए-ज़माना को वो देते हैं सलामी
मैं उस को ख़ता-कार जो कहता हूँ बुरा हूँ

वो शहर में करते हैं अँधेरों की तिजारत
मैं ज़ुल्म की बस्ती का उजाला हूँ बुरा हूँ

वो शाह-ए-सितम-कार के कहते हैं क़सीदे
मैं नौहा-ए-मज़लूम जो करता हूँ बुरा हूँ

वो ख़ानक़ही दीन के पैरव हैं अज़ल से
मैं आज तलक साहब-ए-इल्ला हूँ बुरा हूँ

'नक़्क़ाश' वही ला है मिरे शेर-ओ-सुख़न में
अंजाम शहादत है मैं सच्चा हूँ बुरा हूँ


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