दूर करने को तिरी ज़ुल्फ़ का ख़म उतरेंगे आसमानों के सितारे कोई दम उतरेंगे हौसला और ज़रा हौसला ऐ संग-ब-दस्त वक़्त आएगा तो ख़ुद शाख़ से हम उतरेंगे एक उम्मीद पे ता'मीर किया है घर को उस के आँगन में कभी तेरे क़दम उतरेंगे हमें लिखना है ज़मीं वालों के ग़म का नौहा आसमानों से किसी रोज़ क़लम उतरेंगे इतनी आहें न भरो अश्क न सारे बह जाएँ तब-ए-नाज़ुक पे अभी और भी ग़म उतरेंगे जैसे हम आँख मिला कर तिरे दिल में आए लोग इस ज़ीना-ए-दुश्वार से कम उतरेंगे शाद-ओ-शादाब उसी वक़्त रहूँगा 'यासिर' सर-ए-क़िर्तास जब अशआ'र के यम उतरेंगे