दूर तक राह में काँटे हैं बहुत मेरे भी चाहने वाले हैं बहुत घर से निकलो न बदल कर चेहरे शहर में आईना-ख़ाने हैं बहुत क्या छुपें ख़ुशबुएँ रुस्वाई की प्यार के फूल महकते हैं बहुत और कुछ भी नहीं अपने बस में याद कर के तुझे रोते हैं बहुत तू भी तन्हा है बिछड़ कर हम से हम भी ऐ दोस्त अकेले हैं बहुत इक तुझी से है सरोकार हमें यूँ तो अल्लाह के बंदे हैं बहुत 'मौज' इज़हार-ए-मोहब्बत के लिए आँखों आँखों में इशारे हैं बहुत