दूर-अंदेश मरीज़ों की ये आदत देखी हर तरफ़ देख लिया जब तिरी सूरत देखी आए और इक निगह-ए-ख़ास से फिर देख गए जबकि आते हुए बीमार में ताक़त देखी क़ुव्वतें ज़ब्त की हर चंद सँभाले थीं मुझे फिर भी डरते हुए मैं ने तिरी सूरत देखी महफ़िल-ए-हश्र में ये कौन है मीर-ए-मज्लिस ये तो हम ने कोई देखी हुई सूरत देखी सब ये कहते हैं उसे अब कोई आज़ार नहीं क्यूँ सितमगार मिरे ज़ब्त की क़ुव्वत देखी सोने वालों पे न चमका कभी नूर-ए-सहरी रोने वालों ही के चेहरों पे सबाहत देखी इस क़दर यास भी होती है कहीं दुनिया में रो दिए हम जो तिरी चश्म-ए-इनायत देखी मुझ को ता'लीम से फ़ुर्सत ही कहाँ ऐ 'शब्बीर' कह लिया शेर कोई जब कभी फ़ुर्सत देखी