दूरियों में क़राबतों का मज़ा लीजे लीजे मोहब्बतों का मज़ा कुछ मज़ा बारिशों की शोरिश का कुछ टपकती हुई छतों का मज़ा हो गई ना तबाह ख़ुद-दारी ले लिया ना रिआयतों का मज़ा इक मुहाजिर ही जान सकता है कैसा होता है हिजरतों का मज़ा धूप जा-ए-क़रार सायों की हर बगूला मसाफ़तों का मज़ा भूक और प्यास ज़ात की लज़्ज़त फ़ाक़ा-मस्ती क़नाअतों का मज़ा जैसे सज्दे में क़त्ल हो कोई ऐसा होता है चाहतों का मज़ा मौत है ज़िंदगी की कमज़ोरी जाँ-कनी अपनी क़ुव्वतों का मज़ा इश्क़ होता है तब ही जब 'मोहसिन' मुंतक़िल हो तबीअतों का मज़ा