दुरून-ए-चश्म हर इक ख़्वाब मर रहा है बस हमारे पास यही आज-कल बचा है बस तिरी तलब थी ज़माना तुझे ज़माना मिला मिरी तलब थी ख़ुदा सो मिरा ख़ुदा है बस उदास है न किसी से हुआ है झगड़ा कोई बड़े दिनों से यूँही दिल दुखा हुआ है बस जहाँ पे चाहो मिरे हाथ को झटक देना मुझे पता है तअ'ल्लुक़ ये आम सा है बस खड़ी हुई हूँ किनारे चनाब के सर-ए-शाम भँवर भँवर मिरी आँखों में घूमता है बस किया जो ग़ौर तो हर-सम्त नाचती थी आग मुझे लगा था मिरा घर ही जल रहा है बस हमारे पास नहीं 'सादिया' कोई रस्ता हमारे पास यही एक रास्ता है बस