दूसरों के वास्ते बद-हाल रह कर क्या मिला ग़म छुपा कर उम्र भर ख़ुश-हाल रह कर क्या मिला सिर्फ़ लोगों को हँसी आई मिरे हालात पर क्या बताएँ बे-सबब कंगाल रह कर क्या मिला बे-सहारा उन परिंदों का ठिकाना पीठ पर आप क्या समझेंगे मुझ को डाल रह कर क्या मिला नेह की पुचकारियों के साथ मैं आशीष भी मैं समझ सकता हूँ रोटी दाल रह कर क्या मिला जानवर इंसान पक्षी कोई भी आता नहीं गाँव का सूखा हुआ फिर ताल रह कर क्या मिला इन परिंदों को पकड़ कर क़ैद करना बे-सबब सोंचता हूँ ज़िंदगी भर जाल रह कर क्या मिला आँख से बहते हुए आँसू नहीं पोछे गए व्यर्थ ही रक्खा रहा रूमाल रह कर क्या मिला