दुश्मन के साथ दोस्त भी शीशों के घर में था लेकिन मैं दश्त-ओ-कोह पे पैहम सफ़र में था यूँ देखने में दूर से हर शय थी दिल-नशीं इक दर्द सा बसा हुआ शाम-ओ-सहर में था महफ़िल में अपने आप से हम पूछते रहे किस का लहू मकान के दीवार-ओ-दर में था ये सच है तेरे आने से मौसम बदल गया वर्ना बड़ा जुमूद सा अहल-ए-नज़र में था टूटा हुआ था वाक़ई अंदर से आदमी तारों को तोड़ लाने का सौदा तो सर में था 'मसऊद' रात काट के साग़र के दौर में शैख़ों के साथ साथ वो अल्लह के घर में था