जो कुछ है तेरा अक्स है दर्पन में कुछ नहीं तेरे सिवा ख़याल के दामन में कुछ नहीं जब से मुझे वो छोड़ के परदेस जा बसा मेरी उदास रात के आँगन में कुछ नहीं मैं तिश्नगी बुझाऊँगा आँखों में डूब कर भीगी हुई बहार के दामन में कुछ नहीं ज़ंजीर की सदा में लताफ़त है आज भी सच पूछिए तो नुक़रई कंगन में कुछ नहीं सब कुछ उठा के ले गए 'मसऊद' फिर अदू क़दमों के कुछ निशान हैं मस्कन में कुछ नहीं