दुश्मन पे रख के देते हो गाली इताब में है हर सुख़न ज़बाँ पे तुम्हारी हिजाब में बहर-ए-जहाँ में ज़ीस्त न हो क्यों हबाब-वार नुक़्तों ही का है फ़र्क़ हयात-ओ-हबाब में आँखें ये आशिक़ों की हैं तुझ पर लगी हुईं छापे नहीं हैं ये गुल-ए-नर्गिस नक़ाब में हम आबख़ूरा-ए-ख़ुम-ए-मय की तरह असस डूबे रहें मुदाम गले तक शराब में बाद-ए-फ़ना भी शाहसवार-ए-समंद-ए-नाज़ हाज़िर हैं मिस्ल-ए-रेग-ए-रवाँ हम रिकाब में दोज़ख़-नसीब मर्दुम-ए-आबी को हो अभी टपके जो अश्क-ए-गर्म कोई अपना आब में हर-दम रवा-रवी में है ये तौसन-ए-हबाब हर-वक़्त अपना पाँव है गोया रिकाब में दरिया का नाम शोर से मंसूब हो गया धोया जो तुम ने लाल-ए-नमक सा को आब में 'साबिर' फ़क़त सुख़न में है अब लुत्फ़-ए-आशिक़ी हर बात का मज़ा था शुरूअ'-ए-शबाब में