दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है शोख़ है बाँक है निकत भूँ है तुझ कूँ लैला भी देख मजनूँ है दिल-रुबाओं का दिल-रुबा तूँ है दिल के छिलने कूँ ये लटक चलना सेहर है टोटका है अफ़्सूँ है ख़ाल-ए-मुश्कीं है लाल लब-हा पर या मय-ए-सुर्ख़ बीच अफ़्यूँ है आन है दर्द के ज़ईफ़ाँ पर आह दिल की अलिफ़ है क़द नूँ है दरगुज़र कर रक़ीब सीं ऐ दिल बे-हया है रिजाला है दूँ है दर्द-ए-सर का इलाज क्यूँ न करे यार का रंग संदली-गूँ है शैख़ ख़िरक़े में जब मुराक़िब हो गुर्बा मिस्कीन है मिरी जूँ है गर वफ़ादार-कुश नहीं वो शोख़ 'आबरू' साथ दुश्मनी क्यूँ है