दुश्वारी-ए-हयात को आसाँ न कर सके हम अपने दर्द का कोई दरमाँ न कर सके तौहीन हम ने अपनी गवारा न की कभी इज़्ज़त को अपनी हिर्स पे क़ुर्बां न कर सके हम ने तो अपने आप को ख़ुद ही डुबो दिया तूफ़ाँ हमें डुबोने का एहसाँ न कर सके इश्क़-ए-बुताँ में हाल से बेहाल हो गए हम फिर भी कुछ नजात का सामाँ न कर सके मरने के बा'द क़ब्र का मेरी निशाँ न हो कोई रफ़ीक़ उस पे चराग़ाँ न कर सके आशिक़ हक़ीक़तन वही होता है जिस का दिल तड़पे मगर विसाल का अरमाँ न कर सके बे-कार कर दिया है हमें इश्क़ ने 'अज़ीज़' दुनिया में कोई कार-ए-नुमायाँ न कर सके