ऐ बुत-ए-ना-आश्ना कब तुझ से बेगाने हैं हम तू अगर इस बज़्म में मय है तो पैमाने हैं हम बोसा लेवें या गले लग जाएँ आज़ुर्दा न हो चाहने वाले हैं और दीवाने मस्ताने हैं हम कब अलम और हसरतें अपनी कहें ऐ दोस्ताँ रात को बुलबुल हैं हम और दिन को परवाने हैं हम घूरने से क्या तुम्हारी आँखों के हम डर गए वे अगर हैं मस्त ऐ प्यारे तो दीवाने हैं हम ऐ 'रज़ा' हम मिल गए उस से गले पी कर शराब गो हैं दीवाने पर अपने काम के स्याने हैं हम