ऐ ग़ज़ल तेरी नज़र जब से उतारी हम ने रख दिया नाम तिरा राज-कुमारी हम ने इस लिए ग़म को बना रक्खा है अपना साथी तुझ को दे दी है ख़ुशी सारी की सारी हम ने दिल के जज़्बात ज़माने को बताने के लिए शेर-गोई का सफ़र रक्खा है जारी हम ने दर्द-ए-फ़ुर्क़त में न सो पाओगे अब चैन से तुम नींद आँखों से चुरा ली है तुम्हारी हम ने जो कहा तुझ से अकेले में कहा ऐ ज़ालिम आबरू कब तिरी महफ़िल में उतारी हम ने नक़्द है इश्क़ का सौदा ये हुआ जब मालूम इस में रक्खी ही नहीं कोई उधारी हम ने हैं कहाँ जिन पे अदब का था कभी दार-ओ-मदार अब तो स्टेज पे देखे हैं मदारी हम ने ये हक़ीक़त है तुम्हें कोई नहीं पूछेगा क्या करोगे जो कभी तोड़ दी यारी हम ने उन से बिछड़े हैं तो फिर नींद न आई 'रहबर' तारे गिन गिन के हर इक रात गुज़ारी हम ने