ऐ ग़म-ए-दोस्त तिरा वो ही सहारा होगा बे-ख़बर रह के तुझे जिस ने बुलाया होगा अपने आँगन में अभी तक वो भटकता होगा नक़्श-ए-पा आप का जिस ने भी मिटाया होगा अपने माज़ी के कुछ औराक़ उलट कर देखो कोई तो होगा जो अब तक वहीं ठहरा होगा ये समझ कर ही छुपा रखा है आँखों में उसे आप का अक्स मगर आप से प्यारा होगा अब भी सीने में लिए आग में जलती हूँ नदीम इक न इक दिन मिरे घर में भी उजाला होगा मेरी बर्बाद तमन्नाओं पे हँसने वाला अपनी पलकों को भी कुछ देर भिगोया होगा 'नाज़' बेहतर तो यही है कि घर अब लौट चलें क्या ख़बर कोई सर-ए-शाम ही आया होगा