यार था गुलज़ार था मय थी फ़ज़ा थी मैं न था लाएक़-ए-पा-बोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी गया ये सरापा शोख़ी-ए-दुज़्द-ए-हिना थी मैं न था बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआ'फ़ ये दिल-ए-बेताब की सारी ख़ता थी मैं न था हाए साक़ी ये हो सामाँ और आशिक़ वाँ न हो यार था सब्ज़ा था बदली थी हवा थी मैं न था मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद-ओ-क़ैस क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था मैं ने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न-ओ-शबाब हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी मैं न था ऐ 'ज़फ़र' ये दिल प मेरे दाग़ कैसा रह गया ख़ाना बाग़-ए-यार में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा थी मैं न था