ऐ हवा-ए-दयार-ए-दर्द-ओ-मलाल मर्हबा मर्हबा तआल तआल लफ़्ज़ गुम-सुम हैं और इन में है ग़म मेरी ख़ामोशियों का जाह-ओ-जलाल अक़्ल से कस्ब-ए-रौशनी कर के मुल्क-ए-दिल हो गया है रू-ब-ज़वाल तू भी उस में है तेरी दुनिया भी कितना गहरा है सोच का पाताल पक्की सड़कों पे याद आता है कच्चे रस्तों का सब्ज़ा-ए-पामाल किस पे अब है चिनार का साया ईं जीरानिना-ओ-कैफ़ल-हाल खोल दीवान-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़ फ़ाल तू अब रफ़ीक़-ए-राज़ निकाल