नख़्ल-ए-ममनूअा के रुख़ दोबारा गया मैं तो मारा गया अर्श से फ़र्श पर क्यूँ उतारा गया मैं तो मारा गया जो पढ़ा था किताबों में वो और था ज़िंदगी और है मेरा ईमान सारे का सारा गया मैं तो मारा गया ग़म गले पड़ गया ज़िंदगी बुझ गई अक़्ल जाती रही इश्क़ के खेल में क्या तुम्हारा गया मैं तो मारा गया मुझ को घेरा है तूफ़ान ने इस क़दर कुछ न आए नज़र मेरी कश्ती गई या किनारा गया मैं तो मारा गया मुझ को तू ही बता दस्त-ओ-बाज़ू मिरे खो गए हैं कहाँ ऐ मोहब्बत मिरा हर सहारा गया मैं तो मारा गया इश्क़ चलता बना शाइरी हो चुकी मय मयस्सर नहीं मैं तो मारा गया मैं तो मारा गया मैं तो मारा गया मुद्दई बारगाह-ए-मोहब्बत में 'फ़रताश' थे और भी मेरा ही नाम लेकिन पुकारा गया मैं तो मारा गया