ऐ हुस्न-ए-ख़ुश-सिफ़ात मिरे साथ साथ चल करनी है तुझ से बात मिरे साथ साथ चल साहिल की भीगी रेत पे कुछ दूर नंगे पाँव हाथों में डाले हाथ मिरे साथ साथ चल इक शब गुज़ारनी है ग़ज़ल के दयार में शम्अ'-ए-तसव्वुरात मिरे साथ साथ चल सूरज तो ए'तिबार के क़ाबिल नहीं रहा ऐ पूर्निमा की रात मिरे साथ साथ चल हर शख़्स वासना का पुजारी है शहर में कमसिन है तेरी ज़ात मिरे साथ साथ चल कब से मैं कर रहा हूँ तिरे दर पे इल्तिजा अब मान भी जा बात मिरे साथ साथ चल ले जा रहे हैं लोग मुझे क़ब्र-गाह में आ वाजिबुज़्ज़कात मिरे साथ साथ चल 'हसरत' इबादतों के तसव्वुफ़ में हो के गुम का'बे से सोमनात मेरे साथ साथ चल