ऐ इश्तियाक़-ए-दीद बता आज क्या करें उन से नज़र चुराएँ कि हम सामना करें उन से कहो कि फ़र्ज़-ए-रिफ़ाक़त अदा करें मेरे जुनूँ पे अहल-ए-ख़िरद तबसिरा करें उन दोस्तों की हम पे इनायत न पूछिए वो वक़्त आ पड़ा है कि दुश्मन दुआ करें फ़ैज़-ए-जुनूँ से दार की मंज़िल तक आ गए अब अपने क़ाफ़िले का किसे रहनुमा करें अहल-ए-तलब ब-ज़ौक़-ए-तलब राह-ए-इश्क़ में हर इंतिहा के बाद नई इब्तिदा करें कब तक मैं इंतिज़ार करूँ दौर-ए-हिज्र में उम्मीद के चराग़ कहाँ तक जला करें वो मेरे दिल पे बर्क़-ए-तबस्सुम गिरा चुके अब उन को क्या हज़ार फ़साने बना करें फिर क्यों निगाह-ए-बर्क़ तवज्जोह करे इधर मौज-ए-बहार से जो नशेमन जला करें 'शाहिद' हम आज हज़रत-ए-नासेह से पूछ लें दिल का कहा करें कि तुम्हारा कहा करें