ऐ जुनून-ए-बंदगी-ए-शौक़ ये क्या कर दिया उन के धोके में न जाने किस को सज्दा कर दिया ख़ुद उन्हों ने अपना राज़-ए-हुस्न अफ़्शा कर दिया जिस तरफ़ भी आँख उठाई हश्र बरपा कर दिया काश वो ग़म ता-अबद दिल पर रहे साया-फ़गन जिस ने दिल को बे-नियाज़-ए-दीन-ओ-दुनिया कर दिया तुम ही सोचो 'कैफ़' अब किस का हो मुझ को ए'तिबार ख़ुद मिरी आँखों ने मेरा राज़ अफ़्शा कर दिया