ऐ जुनूँ वो गुल खिला सारा चमन देखा करे जब गरेबाँ चाक हो जाए बहार आया करे ज़ुल्फ़-ए-जानाँ जब सँवरने के लिए तरसा करे अब्र-ए-रहमत हम गुनहगारों पे क्या साया करे आँख खोल ऐ महव-ए-ख़ुद-बीनी कहीं ऐसा न हो आईना-ख़ानों में आईनों से टकराया करे देख कर काली घटाएँ होश खो देते हैं लोग अपने गेसू खोल दे कोई तो दुनिया क्या करे ख़ुद-फ़रोशी है ब-अल्फ़ाज़-ए-दिगर शुक्र-ए-करम आदमी कुछ सोच कर तो हाथ फैलाया करे अब कहाँ संगीनी-ए-हालात से पहले की बात कोई पत्थर मेरे शीशे से न टकराया करे अब तो इस यकसानियत से ज़िंदगी घबरा गई जो हँसा हँसता रहे जो रो दिया रोया करे