ऐ काश कि टूटे तिरा पिंदार किसी दिन कर ले तू मिरे प्यार का इक़रार किसी दिन ये झाँकना छुप-छुप के हमेशा न रहेगा गिर जाएगी ये बीच की दीवार किसी दिन हालात के महबस से निकालो उन्हें वर्ना मर जाएँगे घुट कर यहाँ ख़ुद्दार किसी दिन सरशार कभी मैं भी बहुत था उसे मिल कर पछताएगा तू भी ऐ मिरे यार किसी दिन सुनते हैं कि उस पार बड़ी सब्ज़ रुतें हैं क्यूँ हम भी न 'अय्याज़' चलें पार किसी दिन