ऐ काश न होता ये असर आह-ए-रसा में इक बरहमी आती है नज़र ज़ुल्फ़-ए-दोता में दाख़िल जो हुआ हल्क़ा-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा में पाता नहीं वो फ़र्क़ सज़ा और जज़ा में उस अंजुमन-ए-नाज़ में क्या काम क़ज़ा का हूँ सैकड़ों अंदाज़ जहाँ एक अदा में मेराज-ए-मोहब्बत में हुईं लाज़िम-ओ-मलज़ूम है एक कशिश मेरी वफ़ा तेरी जफ़ा में साबित ये हुआ दर्द-ए-मोहब्बत के असर से तासीर दुआ में है न तासीर दवा में दिल झुकते हैं ऐसे कि कभी सर नहीं उठते उश्शाक़ ने कुछ पाया है नक़्श-ए-कफ़-ए-पा में इक उक़्दा है जो खुल नहीं सकता है किसी से ये किस ने गिरह डाली तिरे बंद-ए-क़बा में 'बेख़ुद' का निशाँ पूछते हो क़ाफ़िले वालो इक गर्द सी उड़ती हुई देखा है हवा में