ऐ ख़्वाहिश-ए-यक-तरफ़ा-ए-ताराज-ए-जुनूँ सुन सुन दिल के क़रीं ज़मज़मा-ए-कुन-फ़यकूँ सुन सुनने की है जो ताब तो फिर खोल दरीचे ऐ गोश-ए-मोहब्बत मिरा अहवाल-ए-ज़ुबूँ सुन क्यों इस में जलाता नहीं तू याद की शमएँ कब तक तू रहेगा यूँ तही कुंज-ए-दरूँ सुन इक बार वो आया था मिरी इशरत-ए-शब में तारी है मिरे दिल पे वही शाम-ए-फ़ुसूँ सुन ख़म्याज़ा-ए-बेदारी-ए-शब झेल रही हूँ रूठा है 'सहर' मुझ से मिरा ख़्वाब-ए-दरूँ सुन