ऐ नए दौर कोई ख़्वाब नया ले आना डूबना है मुझे सैलाब नया ले आना कोई अब सुनने को तय्यार नहीं कोहना सदा शहर-आशोब में मिज़राब नया ले आना तीरगी इतनी कि आँखों का भी दम घुटता है हो सके तो कोई महताब नया ले आना इस से पहले कि तुम्हें झील कोई कह उट्ठे ज़ेहन की नद्दी में गिर्दाब नया ले आना ख़ुद को 'शहज़ाद' जो ‘हज्जाज’ बनाना हो तुम्हें अपनी तहरीर में एराब नया ले आना