आँखों की प्यास बस बुझानी है ज़ीस्त यसरिब ही में बतानी है आरज़ू पूरी हो ख़ुदावंदा वर्ना तो हर शय बे-मआ'नी है उन के ही दर का है सभी सदक़ा मेरे अशआ'र में रवानी है तू मोहम्मद के इश्क़ में खो जा ये मोहब्बत ही जावेदानी है ज़िंदगी आप पर निछावर है आप बिन ज़ीस्त बे-मआ'नी है है शफ़ाअत का आसरा वर्ना शर्मसारी भरी कहानी है हो अरब या कि हो नजफ़ 'शम्सा' शाह-ए-उम्मत की हुक्मरानी है