ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है नहीं बचता नहीं बचता नहीं बचता आशिक़ पूछते क्या हो शब-ए-हिज्र में क्या होता है बे-असर नाले नहीं आप का डर है मुझ को अभी कह दीजिए फिर देखिए क्या होता है क्यूँ न तश्बीह उसे ज़ुल्फ़ से दें आशिक़-ए-ज़ार वाक़ई तूल-ए-शब-ए-हिज्र बला होता है यूँ तकब्बुर न करो हम भी हैं बंदे उस के सज्दे बुत करते हैं हामी जो ख़ुदा होता है 'बर्क़' उफ़्तादा वो हूँ सल्तनत-ए-आलम में ताज-ए-सर इज्ज़ से नक़्श-ए-कफ़-ए-पा होता है