मौत ही चारा-साज़-ए-फुर्क़त है रंज मरने का मुझ को राहत है हो चुका वस्ल वक़्त-ए-रुख़्सत है ऐ अजल जल्द आ कि फ़ुर्सत है रोज़ की दाद कौन देवेगा ज़ुल्म करना तुम्हारी आदत है कारवाँ उम्र का है रख़्त-ब-दोश हर नफ़्स बाँग-ए-कोस-ए-रेहलत है साँस इक फाँस सी खटकती है दम निकलता नहीं मुसीबत है तुम भी अपने 'हया' को देख आओ आज उस की कुछ और हालत है