ऐ शब हिज्र कहीं तेरी सहर है कि नहीं नाला-ए-नीम-शबी तुझ में असर है कि नहीं जान पर अपनी मैं खेला हूँ जुदाई में तिरी बे-ख़बर तुझ को भी कुछ उस की ख़बर है कि नहीं एक मुद्दत हुई हम वस्फ़-ए-कमर करते हैं पर ये मालूम नहीं उस के कमर है कि नहीं रख न सोज़न को ज़रा देख तो ले ऐ जर्राह क़ाबिल-ए-बख़िया मिरा ज़ख़्म-ए-जिगर है कि नहीं क्या ख़ुश आई है दिला मंज़िल-ए-हस्ती तुझ को सच बता याँ से तिरा अज़्म-ए-सफ़र है कि नहीं तो जो बे-पर्दा हो मुँह ग़ैर को दिखलाता है पास मेरा भी कुछ ऐ रश्क-ए-क़मर है कि नहीं देख तू ऐ बुत-ए-बे-मेहर तिरी फ़ुर्क़त में हर-बुन-ए-मूए मिरा दीदा-ए-तर है कि नहीं उस के दर पर ही जो रहता हूँ मैं दिन रात पड़ा मुझ से झुँझला के कहे है तिरे घर है कि नहीं 'मुसहफ़ी' उस की गली में जो तू जाता है सदा अपनी बदनामी का कुछ तुझ को भी डर है कि नहीं