ये बे-मौसम जो पुर्वाई बहुत है सुरूर-ए-दर्द-ए-तन्हाई बहुत है शरीक-ए-ग़म न हो कोई तो अच्छा अकेली हो तो तन्हाई बहुत है अबस शिकवा की बूँदें ढूँढते हो मिरे होंटों की गहराई बहुत है तो क्या मैं दुश्मनों में आ गया हूँ यहाँ तो शोर-ए-पस्पाई बहुत है वो चलता है हमेशा भीड़ ले कर उसे एहसास-ए-तन्हाई बहुत है तुम्हारी याद कितनी बा-वफ़ा है कि जब आई है तो आई बहुत है कहा था तुम ने तन्हाई में मिलना अब आ जाओ कि तन्हाई बहुत है तुम अब 'सौलत' कहो कुछ शोख़ ग़ज़लें जो दिल ने ली वो अंगड़ाई बहुत है