एहतिमाम-ए-रंग-ओ-बू से गुलिस्ताँ पैदा करें आओ मिल-जुल कर बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पैदा करें क्यूँ सुकूत-ए-बे-महल से दास्ताँ पैदा करें दीदा-ओ-दानिस्ता अपने राज़दाँ पैदा करें रास आ सकता है मीर-ए-कारवाँ बनने का ख़्वाब शर्त ये है पहले अपना कारवाँ पैदा करें कार-आराई तो ख़ुद है हासिल-ए-तकमील-ए-कार दिल में क्या अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पैदा करें अपना एजाज़-ए-तसव्वुर देखने की चीज़ है हम जो चाहें तो मकाँ में ला-मकाँ पैदा करें वक़्त को ज़िद ही बदल दो रस्म-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ' दिल ये कहता है कि हंगामा कहाँ पैदा करें आप की मर्ज़ी का है पाबंद-ए-रंग-ए-गुलिस्ताँ आप चाहें तो बहार-ए-जावेदाँ पैदा करें रूह पर हावी न हो जाए फ़ज़ा-ए-सोगवार हम ग़म-ए-दिल से निशात-ए-जावेदाँ पैदा करें कोशिश-ए-तामीर की तख़रीब-सामानी न पूछ आशियाँ-बरदार शाख़ें बिजलियाँ पैदा करें हाँ सिखा दें रंग-ए-रुख़ को आइना-दारी का फ़न बहर-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ' हम तर्जुमाँ पैदा करें फिर बुलाता तूँ के ये तेवर कहाँ बाक़ी 'उरूज' हाल-ए-दिल कह कर जवाब-ए-दरमियाँ पैदा करें