फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने ये मुझे तस्लीम है अर्ज़-ओ-समा के सामने जो तलब-ना-आश्ना हो मा-सिवा के सामने हाथ फैलाती है दुनिया उस गदा के सामने ये कमाल-ए-जज़्ब-ए-दिल मेरी नज़र से दूर था आप ख़ुद आ जाएँगे पर्दा उठा के सामने सोचना पड़ता है क्यूँ बेबस हूँ क्यूँ मजबूर हूँ मैं सर-ए-आग़ाज़-ओ-फ़िक्र-ए-इंतिहा के सामने वो तो कहिए मेरा दिल आमाज-गाह-ए-शौक़ है वर्ना कौन आता है तेरे बे-ख़ता के सामने क्या बताऊँ मेरी ग़र्क़ाबी में किस का हाथ था नाख़ुदा को पेश होना है ख़ुदा के सामने टूट जाएगा तिलिस्म-ए-रास्ती-ओ-रहबरी मैं अगर आईना रख दूँ रहनुमा के सामने ऐ ज़मीर-ए-ज़िंदा मेरे हर-क़दम पर एहतिसाब नामा-ए-आमाल जाएगा ख़ुदा के सामने आँधियाँ उन को बुझा दें आँधियों की क्या मजाल मैं ने वो शमएँ जलाई हैं हवा के सामने शिद्दत-ए-एहसास-ए-तौबा का वो आलम है 'उरूज' जाम मेरे सामने है मैं ख़ुदा के सामने