इक आफ़त-ए-जाँ है जो मुदावा मिरे दिल का अच्छा कोई फिर क्यूँ हो मसीहा मिरे दिल का क्यूँ भीड़ लगाई है मुझे देख के बेताब क्या कोई तमाशा है तड़पना मिरे दिल का बाज़ार-ए-मोहब्बत में कमी करती है तक़दीर बन बन के बिगड़ जाता है सौदा मिरे दिल का गर वो न हुए फ़ैसला-ए-हश्र पे राज़ी क्या होगा फिर अंजाम ख़ुदाया मिरे दिल का क्या कोहकन ओ क़ैस को देते दम-ए-तक़सीम हिस्सा था ग़म-ए-हौसला-फ़रसा मिरे दिल का गो मैं न रहूँ महफ़िल-ए-जानाँ में मगर रोज़ 'तस्लीम' यूँ ही ज़िक्र रहेगा मिरे दिल का