इक अहद की सूरत है कि पैमान की सूरत तू दिल में बसा रहता है ईमान की सूरत लिखती हूँ हर इक बात गुज़रती है जो दिल पे बन जाएगी इक रोज़ ये दीवान की सूरत टूटा है अभी तक न ही टूटेगा कभी भी रखती हूँ तुझे साथ मैं इक मान की सूरत अब बन के यक़ीं दिल में सिमट आया है मेरे आग़ाज़ में लगता था जो इम्कान की सूरत आओ तो ज़रा बाग़ में मिल कर उन्हें देखें आए हैं परिंदे यहाँ मेहमान की सूरत ऐ चारागरो आओ मेरे सामने आओ देखो तो ज़रा बे-सर-ओ-सामान की सूरत