एक ऐसा अज़्म-ए-रासिख़ अब हमारे दिल में है गर्दिश-ए-अय्याम भी ख़ुद इन दिनों मुश्किल में है अपनी उल्फ़त पर बहुत कुछ तब्सिरे होते रहे आज़माइश मेरी ख़ामोशी की हर महफ़िल में है रहरव-ए-मंज़िल न समझा आज तक ये फ़ल्सफ़ा कारवान-ए-ज़िंदगी का हर क़दम मंज़िल में है इस ख़ुशी का हो बुरा मजबूर कितना कर दिया सोच कर ही रह गए हम कैसी ख़्वाहिश दिल में है तेरी मेरी कहने वाले सोच लेना एक बार झूट खुलने पर तिरी इज़्ज़त किसी महफ़िल में है साएबाँ तो है नहीं कोई भी राह-ए-इश्क़ में सोच कर रह रह के ये अहल-ए-ख़िरद मुश्किल में है हम से 'राजे' दुश्मनों का भी बुरा होता नहीं दोस्ती का पास इतना तो हमारे दिल में है