दर्द को कितना चैन मिला है परवानों की महफ़िल में चारागरी दम तोड़ गई है नादानों की महफ़िल में अपनों की महफ़िल में दिल पर तंज़ के नश्तर बरसे हैं किस दर्जा इख़्लास मिला है बेगानों की महफ़िल में आज वफ़ा पर ज़िक्र करेंगे अहल-ए-ख़िरद से दीवाने आज जुनूँ की शम्अ' जलेगी फ़र्ज़ानों की महफ़िल में अब के हम भी वहशत-ए-दिल को बहलाने ले जाएँगे अब के बहारें रक़्स करेंगी वीरानों की महफ़िल में चाँद की किरनों की बाहोँ में सोने वाले जाग उठें हलचल मच जाए न मेरे अरमानों की महफ़िल में हम सौदागर अश्क-ए-वफ़ा के कौन हमें पहचानेगा कौन हक़ीक़त को समझेगा अफ़्सानों की महफ़िल में दर-दर हम ने ठोकरें खाईं दैर-ओ-हरम भी घूम आए 'राजे' मगर इंसान मिले हैं पैमानों की महफ़िल में