इक अजब ख़ौफ़ उमड आता है दरवाज़ों से रात होती है तो भर जाता हूँ आवाज़ों से मैं कहाँ उस के तख़य्युल पे हूँ खुलने वाला क्यों मुझे नापता रहता है वो अंदाज़ों से दर्द की आँच कभी ताल में ढल जाती है रौशनी फूट निकलती है कभी साज़ों से मिरे अल्लाह का एहसान बहुत है मुझ पर मिरी आवाज़ जुदा रहती है आवाज़ों से